दोस्तो बहुत दिनों के बाद यह लिख रहा हूँ इस लेख को लिखने के पीछे का उद्देश्य स्पष्ट कर दूं कि हमारे आस पास पाए जाने वाले पेड़ पौधे कितनी वनस्पतिक गुण रखते है उसकी जानकारी लोगों तक पँहुचाना और जागरूक करना है,,मैं यह लेख बहुत दिनों से लिखने के बारे में विचार कर रहा था परंतु समय अभाव और ठोस वजह नही होने के कारण नही लिख पाया था परंतु आज लिख रहा हूँ वजह भी आगे आपको पता चल ही जायेगा,, मैं बचपन से ही महुआ एकत्रित करने अपने मम्मी के साथ जाता था पर कभी नही सोचा था कि यह इतनी उपयोगी भी होती होगी करके परंतु आज एक दीदी के व्हाटसप स्टेटस में नीचे दिया कविता पढ़ा तो सोचा आज महुए के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी साझा कर ही देता हूँ,, महुए का वैज्ञानिक नाम मधुका लौंगफिलिया है यह मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय वृक्ष है यह हिमालय के तराई व मध्य भारत मे बहुलता से पाये जाने वाले एक प्रकार का अधसदाबहार वृक्ष है कहने का तात्पर्य यह है कि यह वृक्ष साल भर हरा-भरा रहता है परंतु फरवरी और मार्च के मध्य अपना पत्ता गिरा देता है उन्ही समय ईनमें फूल भी लगता है महुए का मुख्य रूप से 12 प्रजातियां पाई जाती है जिनमे से ऋषिकेश', 'अश्विनकेश', 'जटायुपुष्प' प्रमुख हैं। यह वृक्ष लगभग 4-5 वर्षों में ही फूल देना शुरू कर देता है इनके फूल को इक्कठा कर मुख्य रूप से बेचा जाता है परंतु अगर इनका उपयोग देखे तो इनका उपयोग शराब बनाने में मुख्य रूप से करते है जिसे ग्रामीण भाषा मे (एमडी) ठर्रा के नाम से जाना जाता है मध्यप्रदेश में इन्हें माधवी नाम से जाना जाता है और मजे की बात संस्कृत में भी इनके शराब को माध्वी नाम से जाना जाता है महुए का फूल सूखे का रोटी भी बनाते है जिन्हे महुआरी कहा जाता है ,, व इसको सुखाकर कूटकर आटा के साथ मिलाकर रोटी भी बनाया जाता है साथ ही कच्चे फूल को मीचकर उनके रस को पिया भी जा सकता है जिनका स्वाद मीठा आता है वर्तमान में महुए के फूल से बायोगैस तैयार करने व हैंडसेनेटाइजर बनाने व अन्य खाद्य प्रदार्थ बनाने पर प्रयोग चल रहा है महुए के फूल का महत्व धार्मिक अनुष्ठानों में भी मुख्य रूप से किया जाता है जैसे गोंड़ जनजाति द्वारा अपने ईष्ट देवो में इनके फूल का रस व इनके फूल के माला के रूप में किया जा रहा है व हुम में भी महुए के फूल को उपयोग में लाया जा रहा है जो आस पास के वातावरण को शुद्ध करने में मुख्य भूमिका अदा करती है व हमारे हल्बा जनजाति में भी महुए के वृक्ष को पवित्र माना जाता है, विवाह सामाजिक अनुष्ठान में महुआ वृक्ष का प्रयोग किया जाता है ,, तथा आज से लगभग 10 वर्ष पहले जब लगभग गाँव मे जॉइंट फैमली रहते थे तो किन्ही के यंहा शादी होने वाला रहता था तो सभी फैमली वाले महुए के पत्ते तोड़ने जाते थे और पत्तल बनाया जाता था , परंतु समय के साथ सिल्वर दोना पत्तल आने से यह रिवाज भी लुप्त हो गया, हमने कइयों बार पैसे को चिपकाने व कॉपी पुस्तको को चिपकाने हेतु महुए के गोंद का प्रयोग किया है इनका गोंद आज कल दुकानों में उपलब्ध फेविकोल इतना स्ट्रॉग होता है (मजबूत जोड़) यह द्वि पत्री बीज वाले वृक्ष है इनके फल को कोवा कहते है व इनके बीज को टोरा या टोरी के नाम से जाना जाता है इनका बीज मुख्य रूप से दो तीन रंगों का होता है सफेद, कॉपी कलर व काली, इनके बीज से तेल निकाला जाता है तथा खली को बैलों को खिलाया जाता है,, इनके तेल का उपयोग हांथ पैरों में ठंडे की दिनों में करने से फटने से बचाता है, सामान्य तापमान में यह जम जाता है इनका प्रयोग साबुन व डिटर्जेन्ट बनाने में किया जाता है साथ ही वनस्पतिक मक्खन बनाने में किया जाता है आज के लिए बस इतना ही जिस कविता से प्रेरित होकर यह पोस्ट लिखा वह कविता अग्रलिखित है आपको मेरा यह लेख कैसा लगा बताना न भूलियेगा
3 टिप्पणियाँ
ग्रेट सर महुआ वाकई काम की चीज है
जवाब देंहटाएं👌👌👌
थैंक्स फ़ॉर कमेंट
हटाएंबहुत अच्छा जानकॎरी सर जी 🙏🙏
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