बारदेवरी पत्थर पर पैर के निशान // Footprints on the Bardevri stone


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स्थान और परिचय

बारदेवरी, कांकेर जिला मुख्यालय से कुछ दूरी पर स्थित एक गाँव या क्षेत्र है, जो चारामा तहसील के अंतर्गत आ सकता है। कांकेर जिला छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में स्थित है और अपने घने जंगलों, पहाड़ियों, और प्रागैतिहासिक स्थलों के लिए जाना जाता है। बारदेवरी में पत्थरों पर उकेरे गए या प्राकृतिक रूप से बने पैरों के निशान और जलकुंड इसे एक रहस्यमयी और आध्यात्मिक स्थल बनाते हैं। यह क्षेत्र दंडकारण्य का हिस्सा माना जाता है, जिसका उल्लेख रामायण में है, और स्थानीय जनजातियों के लिए भी सांस्कृतिक महत्व रखता है।


पत्थर पर पैर और जानवरों के पैरों के निशान

  1. पैरों के निशान:
    • बारदेवरी में पत्थरों पर मानव पैरों के निशान पाए जाते हैं, जो प्राकृतिक रूप से बने हुए प्रतीत होते हैं। ये निशान गहरे और स्पष्ट हैं, जिसके कारण स्थानीय लोग इन्हें पौराणिक या अलौकिक घटनाओं से जोड़ते हैं।
    • स्थानीय मान्यता: कुछ कथाओं के अनुसार, ये निशान भगवान राम या किसी अन्य पौराणिक व्यक्तित्व के हो सकते हैं, जो दंडकारण्य क्षेत्र में अपने वनवास के दौरान यहाँ से गुज़रे होंगे। यह मान्यता रामायण के संदर्भ से प्रेरित है, जिसमें कांकेर क्षेत्र को दंडक वन का हिस्सा कहा जाता है।
    • वैज्ञानिक दृष्टिकोण: पुरातत्वविदों का मानना हो सकता है कि ये निशान प्राकृतिक अपक्षरण (erosion) या प्राचीन मानव गतिविधियों (जैसे शैल चित्र बनाने की प्रक्रिया) के परिणामस्वरूप बने हों। कुछ मामलों में, ये प्रागैतिहासिक मानवों के वास्तविक पैरों के निशान भी हो सकते हैं, जो समय के साथ पत्थरों पर संरक्षित हो गए।
  2. जानवरों के पैरों के निशान:
    • पत्थरों पर विभिन्न जानवरों जैसे हाथी, घोड़े, या अन्य जंगली प्राणियों के पैरों के निशान भी देखे गए हैं। ये निशान स्थानीय वन्यजीवों की उपस्थिति को दर्शाते हैं, जो इस क्षेत्र में प्राचीन काल से मौजूद रहे होंगे।
    • संभावित व्याख्या: ये निशान प्राकृतिक रूप से बने हो सकते हैं, जैसे कि चट्टानों में पानी या हवा के प्रभाव से बनी आकृतियाँ, जो जानवरों के पैरों से मिलती-जुलती हैं। वैकल्पिक रूप से, प्राचीन मानवों ने इन्हें उकेरा भी हो सकता है, जैसा कि कांकेर के अन्य शैल चित्र स्थलों (उड़कूड़ा, गांडागौरी) में देखा गया है।
    • सांस्कृतिक महत्व: स्थानीय जनजातियाँ इन्हें प्रकृति या अपने पूर्वजों से जोड़कर देखती हैं। कुछ मान्यताओं में इन्हें देवताओं या आत्माओं के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
  3. निर्माण और संरक्षण:
    • यदि ये निशान मानव-निर्मित हैं, तो ये मेसोलिथिक या चालकोलिथिक काल (10,000-2,000 ईसा पूर्व) के हो सकते हैं, जब शैल कला इस क्षेत्र में प्रचलित थी। प्राकृतिक संरक्षण के कारण ये आज तक बने हुए हैं।

जलकुंड

  1. विवरण:
    • बारदेवरी में एक प्राकृतिक जलकुंड भी मौजूद है, जो पत्थरों के बीच बना हुआ है। यह जलकुंड वर्ष भर पानी से भरा रहता है और आसपास के पर्यावरण को हरा-भरा रखता है।
    • यह कुंड संभवतः प्राकृतिक रूप से बना है, जो भूजल या वर्षा जल से संचित होता है। इसकी गहराई और आकार मौसम के अनुसार बदल सकता है।
  2. महत्व:
    • धार्मिक और सांस्कृतिक: स्थानीय लोग इस जलकुंड को पवित्र मानते हैं और इसे देवताओं से जोड़ते हैं। कुछ मान्यताओं में इसे "देव कुंड" कहा जाता है, जो बारदेवरी नाम से संबद्ध हो सकता है।
    • पर्यावरणीय: यह जलकुंड स्थानीय वन्यजीवों और पक्षियों के लिए पानी का स्रोत है, जिससे क्षेत्र की जैव-विविधता बनी रहती है।
    • पर्यटन: जलकुंड और पैरों के निशान मिलकर इस स्थान को एक आकर्षक पर्यटन स्थल बनाते हैं, हालाँकि यह अभी व्यापक रूप से प्रसिद्ध नहीं है।
  3. प्राकृतिक उत्पत्ति:
    • यह कुंड संभवतः चट्टानों में प्राकृतिक गड्ढे या भूगर्भीय प्रक्रियाओं (जैसे करस्ट संरचना) का परिणाम है। कांकेर क्षेत्र की पहाड़ियाँ और चट्टानें ऐसी संरचनाओं के लिए अनुकूल हैं।

ऐतिहासिक और पुरातात्विक संदर्भ

  • प्रागैतिहासिक संबंध: कांकेर जिले में शैल गड्ढा  ( गांडागौरी) से सम्बंधित है यह बार देवरी के पत्थर में बना गड्ढा शायद यह दवाई कूटने या कोई अनाज कूटने के कार्य आता रहा होगा इसी से संबधित मुसर बाहना जैसा प्रतीत होता है  इसकी मौजूदगी से पता चलता है कि यह क्षेत्र प्रागैतिहासिक मानव गतिविधियों का केंद्र रहा है। बारदेवरी के पैरों के निशान भी इसी काल से संबंधित हो सकते हैं।
  • रामायण काल से जुड़ाव: स्थानीय कथाओं में इन निशानों को रामायण काल से जोड़ा जाता है, विशेष रूप से भगवान राम, के चरण चिह्नों के रूप में। हालाँकि, यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं है।
  • जनजातीय प्रभाव: कांकेर की हल्बा और अन्य जनजातियाँ इन निशानों को अपने पूर्वजों या प्रकृति के प्रतीक के रूप में देखती हैं, जिससे यह स्थल उनकी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बनता है।

वर्तमान स्थिति

  • संरक्षण: बारदेवरी अभी तक बड़े पैमाने पर पुरातात्विक संरक्षण या पर्यटन विकास के दायरे में नहीं आया है। प्राकृतिक क्षरण और मानवीय हस्तक्षेप से यहाँ के निशान और जलकुंड को खतरा हो सकता है।
  • पहुँच: यह कांकेर शहर से सड़क मार्ग से पहुँचा जा सकता है, लेकिन सटीक दूरी और मार्ग स्थानीय गाइड या जिला प्रशासन से जानकारी लेकर ही तय करना उचित होगा।
  • प्रसिद्धि: यह स्थल स्थानीय लोगों और कुछ साहसिक पर्यटकों के बीच ही जाना जाता है, लेकिन व्यापक प्रचार की कमी के कारण यह छिपा हुआ रत्न बना हुआ है।

निष्कर्ष

बारदेवरी, कांकेर में पत्थरों पर पैरों और जानवरों के निशान, साथ ही जलकुंड, इस क्षेत्र की प्राकृतिक और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक हैं। ये निशान प्रागैतिहासिक मानव गतिविधियों, प्राकृतिक प्रक्रियाओं, और स्थानीय मान्यताओं का संगम हो सकते हैं। यह स्थल पुरातत्वविदों, इतिहास प्रेमियों, और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है। सटीक वैज्ञानिक जानकारी के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) या छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग से संपर्क करना उपयोगी होगा।बारदेवरी, कांकेर, पत्थर, पैर, निशान, जानवर, जलकुंड ,Bardevri, Kanker, stone, footprints, animal, waterpondबारदेवरी, कांकेर, पत्थर, पैर, निशान, जानवर, जलकुंड ,Bardevri, Kanker, stone, footprints, animal, waterpond बारदेवरी, कांकेर, पत्थर, पैर, निशान, जानवर, जलकुंड ,Bardevri, Kanker, stone, footprints, animal, waterpondबारदेवरी, कांकेर, पत्थर, पैर, निशान, जानवर, जलकुंड ,Bardevri, Kanker, stone, footprints, animal, waterpondबारदेवरी, कांकेर, पत्थर, पैर, निशान, जानवर, जलकुंड ,Bardevri, Kanker, stone, footprints, animal, waterpondबारदेवरी, कांकेर, पत्थर, पैर, निशान, जानवर, जलकुंड ,Bardevri, Kanker, stone, footprints, animal, waterpondबारदेवरी, कांकेर, पत्थर, पैर, निशान, जानवर, जलकुंड ,Bardevri, Kanker, stone, footprints, animal, waterpondबारदेवरी, कांकेर, पत्थर, पैर, निशान, जानवर, जलकुंड ,Bardevri, Kanker, stone, footprints, animal, waterpond

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