खैरखेड़ा शैल चित्र: स्थान और परिचय
खैरखेड़ा (Khairkheda) शैल चित्र छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में स्थित हैं। कांकेर जिला छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग का हिस्सा है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और प्रागैतिहासिक पुरातात्विक स्थलों के लिए जाना जाता है। खैरखेड़ा गाँव या इसके आसपास की पहाड़ियों में शैलाश्रय (रॉक शेल्टर्स) हैं, जिनमें प्राचीन शैल चित्र पाए गए हैं। ये चित्र प्रागैतिहासिक मानव की कलात्मक अभिव्यक्ति और जीवनशैली को दर्शाते हैं। यह क्षेत्र घने जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जो प्राचीन काल में मानव समुदायों के लिए आश्रय और सुरक्षा प्रदान करता था।
शैल चित्रों का विवरण
- प्रकार और शैली:
- खैरखेड़ा के शैल चित्र प्राकृतिक शैलाश्रयों की चट्टानों पर बनाए गए हैं। इनमें मानव आकृतियाँ, पशु चित्र, और प्रतीकात्मक रेखाचित्र शामिल हैं।
- चित्रों को मुख्य रूप से लाल (हेमटाइट) और सफेद (चूना) रंगों से बनाया गया है, जो प्रागैतिहासिक शैल कला की विशिष्ट विशेषता है। ये रंग प्राकृतिक खनिजों से प्राप्त किए गए थे।
- शैली में ये चित्र सरल और रेखीय हैं, जो उस समय के शिकारी-संग्राहक समुदायों की कला को प्रतिबिंबित करते हैं।
- चित्रित विषय:
- मानव आकृतियाँ: कुछ चित्रों में शिकार करते हुए या समूह में नृत्य करते हुए लोग दिखाए गए हैं। ये मानव जीवन की सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को दर्शाते हैं।
- पशु चित्र: हाथी, हिरण, भैंस, और जंगली सूअर जैसे जानवरों की आकृतियाँ प्रमुख हैं। ये उस समय के स्थानीय वन्य जीवन और शिकार के महत्व को इंगित करते हैं।
- हथेली के निशान और प्रतीक: हथेलियों के छाप (पाम प्रिंट्स) और ज्यामितीय आकृतियाँ जैसे त्रिकोण या रेखाएँ भी मिलती हैं, जो संभवतः धार्मिक या अनुष्ठानिक प्रतीक हो सकती हैं।
- बैलगाड़ी: कुछ चित्रों में बैलगाड़ी जैसी आकृतियाँ देखी गई हैं, जो प्रारंभिक कृषि जीवन की ओर संकेत करती हैं। यह संभवतः मेसोलिथिक से चालकोलिथिक काल के बीच के संक्रमण को दर्शाता है।
- काल निर्धारण:
- ये शैल चित्र मेसोलिथिक (मध्य पाषाण काल, लगभग 10,000-5,000 ईसा पूर्व) से चालकोलिथिक (ताम्रपाषाण काल, लगभग 2,000 ईसा पूर्व) के बीच के माने जाते हैं। कुछ स्थानीय मान्यताएँ इन्हें और प्राचीन या पौराणिक काल से जोड़ती हैं, लेकिन वैज्ञानिक प्रमाण अभी तक इसकी पुष्टि नहीं करते।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
- प्रागैतिहासिक जीवन का प्रमाण: खैरखेड़ा के शैल चित्र उस समय के मानव समुदायों की जीवनशैली, पर्यावरण, और विश्वासों को समझने का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ये शिकारी-संग्राहक समाज से प्रारंभिक कृषि समाज की ओर बढ़ते विकास को दर्शाते हैं।
- स्थानीय परंपराएँ: कांकेर क्षेत्र की जनजातियाँ, जैसे गोंड और अन्य आदिवासी समुदाय, इन शैल चित्रों को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं। कुछ चित्रों को स्थानीय लोककथाओं से जोड़ा जाता है।
- दंडकारण्य से संबंध: कांकेर जिला दंडकारण्य क्षेत्र का हिस्सा है, जिसका उल्लेख रामायण में है। हालाँकि, शैल चित्रों का रामायण काल से सीधा संबंध वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं है, लेकिन स्थानीय मान्यताएँ इसे पौराणिक संदर्भ से जोड़ती हैं।
पुरातात्विक अध्ययन और खोज
- खैरखेड़ा शैल चित्रों की खोज और प्रारंभिक अध्ययन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग द्वारा किया गया होगा। कांकेर जिले में अन्य शैल चित्र स्थल जैसे उडकुडा, गरगोड़ी, और गोटिटोला के साथ इन्हें भी प्रलेखित किया गया है।
- इन चित्रों की तुलना मध्य प्रदेश के भीमबेटका शैल चित्रों से की जाती है, हालाँकि खैरखेड़ा का दायरा और प्रसिद्धि अपेक्षाकृत कम है।
वर्तमान स्थिति और संरक्षण
- खैरखेड़ा के शैल चित्र प्राकृतिक क्षरण (जैसे बारिश, हवा) और मानवीय गतिविधियों (जंगल कटाई, पर्यटकों की लापरवाही) से खतरे में हैं।
- ASI और छत्तीसगढ़ सरकार ने इनके संरक्षण के लिए कुछ प्रयास किए हैं, जैसे क्षेत्र का सीमांकन और जागरूकता बढ़ाना, लेकिन बड़े पैमाने पर संरक्षण कार्य अभी तक सीमित हैं।
निष्कर्ष
खैरखेड़ा शैल चित्र छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले की प्राचीन धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये प्रागैतिहासिक मानव की कला, जीवनशैली, और पर्यावरण को दर्शाते हैं, साथ ही इस क्षेत्र की सांस्कृतिक निरंतरता को भी उजागर करते हैं। यदि आप इन चित्रों का दौरा करना चाहते हैं, तो कांकेर से स्थानीय गाइड की मदद लेना उचित होगा।