सेमर गाँव की सैर मेरा यात्रा 19 सेमर गाँव कांकेर जिला के अंतागढ़ ब्लॉक के आमाबेड़ा से अंतागढ़ रास्ते में आमाबेड़ा से लगभग 8 से 10 किलोमीटर दूर है बोडागाँव से आगे जाने पर स्वागत गेट है उसी साइड से लगभग 1 किलोमीटर या उससे थोडा कम दुरी पर लिगोदेव ठाना है यह गोंड जनजाति का विशेष दार्शनिक स्थलों में से एक है और इन स्थल का अपना अलग महत्व है सेमर गाँव का नाम पढने के पीछे भी एक तर्क कांफी लोक प्रिय और चर्चित है लिंगो देव के भाई लोग 6 और लिंगो के साथ 7 तो सेमरगाँव में सात सेमर का पेड़ एक कतार में है इसलिए इनका नाम सेमरगाँव पढ़ा ऐसा मान्यता है अब यह किवदंती कितनी तथ्यात्मक और तर्क संगत है कहना मुश्किल है पर आस्था का बहुत बढा केंद्र है और यंहा छत्तीसगढ़ के अलावा और बांकी राज्यों से भी लोग देव मेला में सम्मिलित होने आते है
पारी कुपार लिंगो की स्मृति में प्रसिद्ध देव जतरा (यात्रा)से शुरू होगा। यह तीन दिवसीय आयोजन छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर कांंकेर जिले के वल्लेकनार्र (बड़ी आबादी वाला गांव) सेमरगांव आमाबेडा में किया जाता है । जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर इस गांव में होने वाले इस आयोजन को लेकर अभी से इलाके में चर्चा का बाजार गर्म रहता है। इस आयोजन में कई राज्यों से बड़ी संख्या में आदिवासी भाग लेंते है। तैयारियां बहुत ही खास होती है जात्रा शुरू होने से 1 साल पहले से तैयारी जोरो पर होती है वासी परंपरा में पारी कुपार लिंगो को प्रथम प्राकृतिक वैज्ञानिक माना जाता है। उन्हें संगीत के जनक के रूप में भी याद किया जाता है।
पहांदी पारी कुपार लिंगो कर्रसाड़ व देव जतरा प्रत्येक तीन वर्ष के बाद आयोजित किया जाता है। हालांकि आदिवासी बुजुर्ग बताते हैं 50 वर्ष पूर्व यह जतरा 12 साल में एक बार होता था। इसके पीछे मान्यता यह थी कि 12 साल बाद बांस के फूल खिलते थे, जो बारिश नहीं होने का प्रतीक था। लोग बरसात के लिए जतरा निकालते थे। बुजुर्ग यह भी मानते हैं कि जतरा की तिथि का निर्धारण आंगा पेन (स्थानीय देवताओं) की अनुमति से चन्द्रमा को देखकर किया जाता है। इसलिए तैयारी एक साल पहले ही शुरू हो जाती है।
आज के लिए बस इतना ही फिर कभी लिंगो के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे तब तक के लिए जय माँ दंतेश्वरी फिर अगले बार कोई अन्य प्राकृतिक स्थल और नये जानकारी के साथ मिलेंगे
जय माँ दंतेश्वरी
आपका अपना आर्यन चिराम
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