बड़ेड़ोगर की सैर{ मेरा यात्रा भाग—8}
दोस्तो आज आपको लेकर जा रहा हुं जिसका नाम है।
कुछ महत्वपुर्ण जानकारी बड़ेड़ोगर के बारें में निम्नलिखित है।
यात्रा चित्र संलग्न है?
पहाड़ से दिखने वाला नजारा
दोस्तो आज आपको लेकर जा रहा हुं जिसका नाम है।
बड़ेड़ोगर यह बहुत ही एैतिहासिक व प्राचीन गांव है। और बस्तर के इतिहास में इसका बहुत बड़ा योगदान है। तथा यह ग्राम हल्बा जनजाति के लिए अलग व महत्वपुर्ण भूमिका रखता है। क्योकि पहले सबसे ज्यादा हल्बा जनजाति बड़े ड़ोगर के आस पास ही निवास करते थे। तथा छत्तीसगढ़ का पहला विद्रोह 1774—1779 मे बड़े डोगर क्षेत्र से ही हुआ था। इसमें अधिक संख्या में हल्बा जनजाति के वीर सिपाही भाग लिए थे।इसलिए इस प्रथम विद्रोह को हल्बा विद्रोह के नाम से जाना जाता है।
इस विद्रोह के अन्तिम भाग में हल्बा जनजाति के लोगों को ढुंढ—ढुंढकर उनकी निर्मम हत्या की गई इस प्रकार छत्तीसगढ़ की प्रथम विद्रोह हल्बा विद्रोह की दर्दनाक अंन्त हुआ। इस विद्रोह के पश्चात हल्बा जनजाति पर इस प्रकार क्रुर हमला किया गया जिसको पढने मात्र से या कल्पना मात्र से रूह कांप उठता है। इस विद्रोह के पश्चात कईयों के आंख भोड़ दि गई कितनो को खाई से गीरा दिया गया, कईयों को धधकती आग में झोंक दिया गया, और तरह—तरह की यातनाएं दि गई।इस प्रकार कुछ हल्बा अपने जाति गोत्र झुपाकर अन्यत्र जगहों मे बस गयें जिनका आबादी वर्तमान में बहुत बढ़ गई है। इसलिए यह गांव हल्बा जनजाति के लिए बहुत महत्व रखता है।
व छत्तीसगढ़ के इतिहास के लिए भी यह जगह महत्वपुर्ण है।
कुछ महत्वपुर्ण जानकारी बड़ेड़ोगर के बारें में निम्नलिखित है।
एनएच 43 पर कोण्डागांव जिले के तहसील मुख्यालय फरसगांव से 16 किमी दूर स्थित बड़ेडोंगर महाराजा पुरूषोत्तम देव के समय में बस्तर की राजधानी बनी पर इसका इतिहास इससे भी प्राचीन है। मान्यताओं और किवदंतियों के अनुसार यह देवलोक है।
चारों ओर पहाड़ियों व सुरम्य जंगलों के बीच स्थित बड़ेडोंगर के हर पहाड़ पर देवी-देवताओं का वास है। वनवासियों की मान्यता है कि हिन्दू मान्यता के 33 कोटि देवी-देवता यहां निवास करते हैं।मान्यता है कि सतयुग में महिषासुर राक्षस ने इस देवलोक पर हमला कर त्राहि-त्राहि मचा दी तब देवताओं के आह्वान पर माता पार्वती देवी दुर्गा के रूप में प्रकट हुई और दोनों के बीच संग्राम बडे डोंगर की पहाड़ी पर हुआ। इस संग्राम के निशान के रुप में शेर का पंजा, भैंसा तथा माता के पगचिन्ह आज भी पहाड़ी के चट्टानों पर मौजूद हैं, जहां पूजा अर्चना होती है।कालांतर में यह बस्तर के राजपरिवार के साथ आई आराध्य मां दंतेश्वरी की वास स्थली बनी और दंतेश्वरी माता यहीं से राजा के साथ दंतेवाड़ा गई। घास-फूस से बने मंदिर का जीर्णोद्धार 1940 में किया गया जिसमें श्रद्धालुओं की अटूट आस्था है और मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद यहां मांगने पर पूरी होती है।इस नवरात्रि में मंदिर में 1300 ज्योति कलश प्रज्जवलित हुए हैं। ज्योति कलश प्रज्जवलित करने बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा सहित दिल्ली से भी राशि आई है। मंदिर में घी के दिए प्रज्जवलित नहीं होते। सैकड़ों सालों से बस्तर दशहरा की झलक बड़ेडोंगर में रथ का परिचालन छोड़ बस्तर के ऐतिहासिक व विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की सभी रस्मों का निर्वहन रियासतकाल से चला आ रहा है और यह सामाजिक सौहार्द्र का प्रतीक है।कन्हारगांव जोगीपारा के मंचाराम तीन साल से लगातार नवरात्रि में यहां जोगी के रुप में एक गड्ढ़े पर बैठ कर निराहार देवी दंतेश्वरी की आराधना करते हैं। उन्हीं का परिवार पारम्परिक रुप से जोगी बनता है। मां के मंदिर में दीप प्रज्जवलन के लिए नारायणपुर के एड़का गांव के कुम्हार पारंपरिक रुप से कलश-दीप का निर्माण कर लाते हैं।मैनपुर के साहू समाज द्वारा तेल लाया जाता है। वहीं छिंदलीबेड़ा, नलाझर के यादव जिन्हें बगड़ित की उपाधि प्राप्त है पारंपरिक रुप से भोग-प्रसाद का निर्माण करते हैं। प्रसाद तैयार करने के पूर्व सौंसारबंधा तालाब में यादव परिवार के बगड़ितों को स्नान करना पड़ता है जिन्हें शुद्ध करने बड़ेडोंगर के नाई प्रेमलाल श्रीवास का परिवार पारंपरिक रुप से सभी का मुंडन करता है।मंदिर में निशा जात्रा के बाद माई दंतेश्वरी व उनके अंगरक्षक नरसिंह देव(आंगादेव) की छत्र व डोली बस्तर के ऐतिहासिक दशहरा पर्व के मावली परघाव रस्म के लिए जगदलपुर रवाना होती है।खूबसूरत लोकेशन, अलौकिक अहसासप्रकृति के गोद में बसा बड़ेडोंगर चारों ओर से वनाच्छादित पहाड़ियों से घिरा हुआ है। पुरूषोत्तम देव के समय में इलाके में निर्मित 147 तालाब बड़ेडोंगर के खूबसूरती पर चार चांद लगाते थे पर बढ़ते अतिक्रमण के कारण तालाबों की संख्या अब 80 से अधिक नहीं है।तालाबों और पहाड़ियों पर बने मंदिर और देव स्थल यहां धार्मिक पर्यटन की असीम संभावनाओं को रेखांकित करते हैं। अगहन जात्रा के पूर्व तेंदूए की दहाड़ और उसे देखा जाना लोग देवीय शक्ति का प्रतीक मानते हैं। शीतला माता मंदिर तथा पहाड़ियों पर बिखरी प्राचीन मूर्तियां लोगों को एक अलौकिक अहसास देता है।आज भी यहीं होता है राज्याभिषेकरियासतकालीन किले और तोपखाने का भग्नावशेष इसकी ऐतिहासिकता की पुष्टि करते हैं। आज भी बस्तर राजपरिवार के किसी सदस्य की छठी, राज्याभिषेक सहित महत्वपूर्ण रस्म यहीं सम्पन्न होते हैं। मुख्य पहाड़ी पर स्थित विशाल चट्टान जिसे टूनटूनी पत्थर कहा जाता है पर पत्थर से चोट करने पर अंदर झांझ बजने की आवाज आती है।पास में ही स्थित नकटी डोंगरी के चोटी पर हर पत्थर शंख की आकृति का है जहां प्राचीन त्रिशूल और कमंडल भी मौजूद हैं। पहाड़ी की इस चोटी पर पत्थरों के बीच तालगुडरा में पानी साल भर सराबोर रहता है। महादेव पहाड़ी की चोटी पर शिव का भव्य मंदिर स्थित है जहां शिवरात्रि और श्रावण के महीने में दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु जुटते हैं।
पहाड़ के नीचे से दिखने वाला नजारा
मां दन्तेश्वरी की चित्र
महाराज प्रवीण भंज देव
दिवाल में टंगे चित्र
गर्भगृह में रखे विभिन्न देवी—देवताओ की मुर्ति
ग्रुप फोटो
पहाड़ से पहले की मदिर की मुर्ति व मंदिर
मंदिर के बाहर की मुर्तिया
टून—टुनी पत्थर
गोंडवाना भवन के पहले की मुर्ति बुड़ादेव
सीड़ियो के पहले की मुर्ति
प्रवेश द्वार
महाराज कमल देव
महादेव मंदिर की उपरी भाग
माता के पद चिन्ह
मेरे अन्य फोटो
कैसे पहुंचे?
दोस्तो अगर आप कांकेर तरफ से जा रहें है। तो फरसगांव से लगभग आधा किलोमिटर पहले दायें साईड रास्ता कटा है।
उसमें बडेंडोंगर का बड़ा सा साइनबोर्ड लगा है।
उसी रास्ते से आप बडें डोंगर पहुंच सकते है।और आप जगदलपुर तरफ से आयेंगें तो फरसगांव के बाद आधा किलोमीटर आगे बांये साइड रास्ता कटा है।मुख्य मार्ग एन एच 43 से लगभग 13-14 किलोमीटर की दुरी पर बसा बड़े डोगर बहुत ही सुन्दर गांव हैं।यहां नवरात्र व कृष्ण जन्माष्टमी आदि त्यौहारो के अवसरो में बहुत अधिक संख्या में श्रध्दालु आतें है।व मां दन्तेश्वरी के दर्शन कर अपने आप को धन्य करते है।
आपको जानकारी कैसा लगा जरूर बताइयें ।दोस्तो जय मां दन्तेश्वरी जय हल्बा अगली बार तैयार रहिए नये जगह जाने के लिए मेरे साथ........अगर आप एैतिहासिक चीजे व एैतिहासिक जगह पसंद है। तो आप एक बार बड़े डोंगर जरूर जायें,आज के लिए बस इतना ही धन्यवाद
आपका अपना
आर्यन चिराम
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