छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले की चारामा तहसील में स्थित गांडा गौरी (या गंडागौरी) नामक गाँव के शैल चित्र अपने पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं। ये शैल चित्र इस क्षेत्र की प्राचीन सभ्यता और मानव इतिहास की झलक प्रस्तुत करते हैं। यहाँ की पहाड़ियों में पाए गए ये चित्र रामायण कालीन माने जाते हैं, हालाँकि इनकी सटीक समय-रेखा अभी भी पुरातत्वविदों के बीच अध्ययन का विषय है। नीचे इन शैल चित्रों के बारे में विस्तृत जानकारी दी जा रही है:
स्थान और भौगोलिक संदर्भ
गांडा गौरी गाँव चारामा नगर से निकट दूरी पर स्थित है, जो महानदी के किनारे बसा हुआ एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह क्षेत्र राष्ट्रीय राजमार्ग 30 के पास होने के कारण सुलभ है। शैल चित्र इस गाँव की पहाड़ियों में स्थित हैं, जो प्राकृतिक शैलाश्रयों (रॉक शेल्टर्स) में बने हैं। ये शैलाश्रय प्राचीन मानवों के लिए आश्रय स्थल रहे होंगे, और यहाँ की चट्टानों पर बने चित्र उनकी जीवनशैली और विश्वासों को दर्शाते हैं।
शैल चित्रों का विवरण
- प्रकार और शैली:
- गांडा गौरी के शैल चित्रों में मानव आकृतियाँ, पशु चित्र, और प्रतीकात्मक चिह्न देखे जा सकते हैं। इनमें शिकारी जीवन, सामूहिक गतिविधियाँ, और संभवतः धार्मिक या अनुष्ठानिक दृश्य शामिल हैं।
- चित्रों को प्राकृतिक रंगों से बनाया गया है, जैसे लाल (हेमटाइट) और सफेद (चूना), जो प्रागैतिहासिक कला की विशेषता है।
- विशिष्ट चित्रण:
- कुछ विद्वानों का मानना है कि यहाँ के चित्रों में रामायण काल से संबंधित दृश्य हो सकते हैं, जैसे योद्धाओं की आकृतियाँ या युद्ध के संकेत। हालाँकि, यह व्याख्या अभी सत्यापित नहीं हुई है।
- पशुओं में हाथी, भैंस, और हिरण जैसी आकृतियाँ प्रमुख हैं, जो उस समय के स्थानीय वन्य जीवन को दर्शाती हैं।
- कुछ चित्रों में मानव समूहों को नृत्य करते या शिकार करते हुए दिखाया गया है, जो सामाजिक जीवन की झलक देता है।
- पत्थरों में छोटा छोटा गड्ढा बना हुआ है सम्भवता वंहा कोई सामग्री कूटने का कार्य किया जाता रहा होगा या दवाई कूटने का कार्य किया जाता रहा होगा
- देखने से ऐसा लगता है अनाज या कोई दवाई कूटने के लिए इसका प्रयोग किया जाता रहा होगा
- काल निर्धारण:
- ये शैल चित्र प्रागैतिहासिक से लेकर प्रारंभिक ऐतिहासिक काल (मेसोलिथिक से चालकोलिथिक, लगभग 10,000 से 2,000 ईसा पूर्व) के बीच के माने जाते हैं। कुछ स्थानीय मान्यताएँ इन्हें (लगभग 1200 ईसा पूर्व या उससे पहले) से जोड़ती हैं, परंतु वैज्ञानिक प्रमाण अभी इसकी पुष्टि नहीं करते।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
- प्राचीन सभ्यता का प्रमाण: ये चित्र इस क्षेत्र में प्राचीन मानव बस्तियों और उनकी कलात्मक अभिव्यक्ति के प्रमाण हैं। यहाँ के शैलाश्रय शिकारी-संग्राहक समुदायों के जीवन को समझने में सहायक हैं।
- सांस्कृतिक निरंतरता: ये चित्र छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा और प्राचीन कला के प्रति सम्मान को दर्शाते हैं। यहाँ की जनजातियाँ आज भी प्रकृति और अपने इतिहास से गहरा जुड़ाव रखती हैं।
पुरातात्विक अध्ययन और खोज
- गांडा गौरी के शैल चित्रों की खोज और अध्ययन का श्रेय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और स्थानीय इतिहासकारों को जाता है। इन चित्रों की तुलना मध्य प्रदेश के भीमबेटका शैल चित्रों से की जाती है, जो विश्व प्रसिद्ध हैं।
- कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन चित्रों में प्राचीन खगोलीय संकेत या प्रतीक भी हो सकते हैं, जो उस समय की मानव बुद्धिमत्ता को दर्शाते हैं।
वर्तमान स्थिति और संरक्षण
- ये शैल चित्र प्राकृतिक और मानवीय प्रभावों से संकट में हैं। मौसम, वनस्पति वृद्धि, और पर्यटकों की लापरवाही इनके लिए खतरा बनी हुई है।
- छत्तीसगढ़ सरकार और पुरातत्व विभाग इनके संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं, परंतु अभी तक ये भीमबेटका की तरह वैश्विक पहचान नहीं पा सके हैं।
- यंहा एक देव मेला होता है उसी दिन यंहा के देवता पहाड़ के उपर बने कुंड में स्नान करता है
- गाँव के गायता के अनुसार यह कुंड देव कुंड है इसमें कैना निवास करते है ऐसा गाँव वालो का मानना है
निष्कर्ष
गांडा गौरी के शैल चित्र छत्तीसगढ़ के चारामा क्षेत्र की प्राचीन धरोहर का एक अनमोल हिस्सा हैं। ये न केवल कला और इतिहास के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इस क्षेत्र के प्राचीन मानव जीवन, पर्यावरण, और संभवतः पौराणिक कथाओं से जुड़ाव को भी उजागर करते हैं। यदि आप इनके बारे में और गहराई से जानना चाहते हैं या इनका दौरा करना चाहते हैं, तो स्थानीय गाइड और पुरातत्व विशेषज्ञों से संपर्क करना उचित होगा। यह शैल चित्र गोटीटोला , उड़कूड़ा, खैरखेडा, चन्देली गाँव के शैल चित्रों के समकालीन चित्र है
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