Header Ads Widget

A

A

R

Y

A

N

C

H

I

R

A

M

नया लेख

6/recent/ticker-posts

संस्कृत के श्लोक (ओकर सत्यानाश)

संस्कृत की क्लास मे गुरूजी ने पूछा = पप्पू इस
श्लोक का अर्थ बताओ. "कर्मण्येवाधिका रस्ते
मा फलेषु कदाचन". .
पप्पू = राधिका शायद रस्ते मे फल बेचने का
काम कर रही है.
.
गुरूजी = मूर्ख, ये अर्थ नही होता है. चल इसका
अर्थ बता:-
"बहुनि मे व्यतीतानि, जन्मानि तव चार्जुन." .
पप्पू = मेरी बहू के कई बच्चे पैदा हो चुके हैं,
सभी का जन्म चार जून को हुआ है. . गुरूजी गुस्सा
हो गये फिर पुछा :- "तमसो मा ज्योतिर्गमय"
पप्पु= तुम सो जाओ माँ मैं ज्योति से मिलने
जाता हुँ.
.
गुरूजी = अरे गधे, संस्कृत पढता है कि घास
चरता है. अब इसका अर्थ बता:- "दक्षिणे
लक्ष्मणोयस्य वामे तू जनकात्मजा." . पप्पू =
दक्षिण मे खडे होकर लक्ष्मण बोला जनक आजकल
तो तू बहुत मजे मे है. . गुरूजी = अरे पागल, तुझे
१ भी श्लोक का अर्थ नही मालूम है क्या ?
पप्पू = मालूम है ना.
.
गूरूजी = तो आखरी बार पूछता हूँ इस श्लोक का
सही सही अर्थ बताना.-
हे पार्थ त्वया चापि मम चापि.......! . क्या
अर्थ है जल्दी से बता. पप्पू = महाभारत के
युद्ध मे श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कह रहे हैं
कि........
.
गुरूजी उत्साहित होकर बीच मे ही . कहते हैं =
हाँ, शाबास, बता क्या कहा श्रीकृष्ण ने अर्जुन
से........? . पप्पू =
भगवान बोले = अर्जुन तू भी चाय पी ले, मैं भी
चाय पी लेता हूँ. फिर युद्ध करेंगे. गुरूजी
बेहोश.....प्रेषकः-आर्यन चिराम

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ